Homeहिन्दू धर्मदशहरा शस्त्र पूजा विधि Dussehra Shastra Puja Vidhi in Hindi

दशहरा शस्त्र पूजा विधि Dussehra Shastra Puja Vidhi in Hindi

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दशहरा शस्त्र पूजा विधि Dussehra (VijayaDashami) Shastra Puja Vidhi Mantra in Hindi शस्त्र पूजन श्लोक | Shastra Pujan Shlok: दशहरा का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है। दशहरा या विजयदशमी पर कई तरह की पूजा होती है। उन्ही में से एक पूजा या पूजन शस्त्र पूजा या पूजन भी है

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दशहरा क्यों मनाया जाता है | Dashara Kyu Manaya Jata Hai

Dashara Kyu Manaya Jata Hai in Hindi: हर वर्ष आश्विन मास की दशमी तिथि को विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाता है। विजयादशमी (दशहरा) की पौराणिक कथा के अनुसार आज ही के दिन भगवान राम ने लंका पुत्र रावण का वध किया था। इस तरह से बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। भगवान् राम की जीत की खुशी में पुरे भारत में हर वर्ष विजयदशमी (दशहरा) का त्यौहार मनाया जाता है। विजयदशमी (दशहरा) पर शस्त्र पूजा की भी परम्परा है। ऐसे में आज हम आपको शस्त्र पूजा विधि मंत्र की जानकारी दे रहे है।

दशहरा शस्त्र पूजा विधि | Dussehra Shastra Puja Vidhi

Dussehra Shastra Puja Vidhi Mantra in Hindi: विजयादशमी (दशहरे) पर शस्त्र पूजन करने के लिए विधि मंत्र बताया गया है जो निम्नवत है:-

  • विजयादशमी यानी दशहरे के दिन, विजया नाम की देवी की एंव शस्त्र की पूजा होती है
  • यह त्यौहार उनके लिए खास है जो शस्त्र रखते है जैसे:- सैनिक, पुलिस विभाग, अन्य
  • दशहरा के दिन शस्त्र पूजा करने के लिए सभी शस्त्र को एक साफ़ स्थान पर रखे
  • उसके बाद जितने भी शस्त्र है उन शस्त्रों पर जल का छिडकाव करे।
  • महाकाली स्तोत्र या मंत्र का पाठ करें
  • उसके बाद शस्त्र पर कुंकुम, हल्दी का तिलक लगाएं
  • हार पुष्पों से श्रृंगार करें
  • धूप-दीप कर मीठा भोग लगाये
  • इसके बाद दल का नेता कुछ देर के लिए शस्त्रों का प्रयोग करे
  • इस प्रकार से शस्त्र का पूजन या पूजा कर शाम को रावण के पुतले का दहन करे

शस्त्र पूजन श्लोक | Shastra Pujan Shlok

अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।1।।

जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं, सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं |

वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।2।।

इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली, मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात |

तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।3।।

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता, लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते |

जपध्यान पुजासुधाधौतपंका, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।4।।

चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द, शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं |

मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।5।।

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा, कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया |

न बाला न वृद्धा न कामातुरापि, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।। 6।।

क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं, मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत् |

तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।। 7।।

यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य, स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च |

गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति, स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ।।8।।

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