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तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर Tarkulha Devi Mandir in Hindi

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तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर Tarkulha Devi Mandir Gorakhpur History in Hindi तरकुलहा देवी की कहानी तरकुलहा मंदिर गोरखपुर देवी मंदिर गोरखपुर का इतिहास हिंदी में

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गोरखपुर में बुढ़िया माई मंदिर और तरकुलहा देवी मंदिर दोनों ही बहुत ही लोकप्रिय मंदिर है इन दोनों मंदिर में दूर दराज से श्रद्धालु बड़ी श्रधा और प्रेम भाव के साथ देवी एंव माता के दर्शन के लिए आते है ऐसे में तरकुलहा देवी मंदिर की कहानी (Tarkulha Devi Mandir Kahani) और जानकारी आपको दे रहे है

तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर

  • तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर अपने कई चमत्कार के वजह से जान जाना जाता है
  • यह मंदिर आजादी की लड़ाई से भी जुडी हुई है
  • यह मंदिर अपने दो विशेषताओ के लिए प्रसिद्ध है
  • डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह की वजह से और
  • तरकुलहा देवी मंदिर बहुत लोकप्रिय है
  • नदी के तट पर मंदिर स्थित है जिसके चारो तरफ तरकुल के पेड़ है
  • यह पेड़ मंदिर की सुन्दरता को चार चाँद लगाता है

Tarkulha Devi Mandir Story in Hindi | तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर

तरकुलहा देवी मंदिर की कहानी: इस मंदिर के आसपास जंगल हुआ करता था जहा पर डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह रहा करते थे नदी के किनारे पर तरकुल (ताड़) के पेड़ के नीचे पिंडियां स्थापित कर बाबू बंधू देवी की उपासना करते थे। तरकुलहा देवी बाबू बंधू सिंह कि इष्ट देवी थी।

कहा जाता है बाबू बंधू गुरिल्ला लड़ाई में बहुत अच्छे थे अंग्रेज जब इस जंगल से गुजरते थे ऐसे में बाबू बंधू उन्हें मार देते थे और अंग्रेजो के सिर को काटकर तरकुलहा देवी के चरण में समर्पित कर देते थे

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बाबू बंधू सिंह की गिरफ्तारी

अंग्रेजो के सिर को काटकर चदाने की वजह से अंग्रजो ने बाबू बंधू सिंह को गिरफ्तार कर लिया था फिर अदालत में पेशी हुई जिसमे उनको फांसी की सजा सुनाया गया 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर के अली नगर चौराहे पर सभी लोगो के सामने बाबू बंधू जी को को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था लेकिन अंग्रेज कामयाब न हुए Tarkulha Devi Mandir History in Hindi

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मां तरकुलहा देवी की कहानी

बंधू देवी माँ के भक्त थे और देवी माँ के चमत्कार की वजह से 7 बार फांसी देने के बावजूद अंग्रेज कामयाब न हुए इसके बाद बाबू बंधू सिंह देवी माँ से खुद मन्नत मांगी देवी माँ मुझे जाने दे इसके बाद देवी माँ ने प्राथना स्वीकार किया और 7वी बार जो फांसी दी गई उसमे अंग्रेजो को कामयाबी प्राप्त हुई

  • गोरखपुर का तरकुलहा देवी मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है
  • जहा पर प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता है
  • तरकुलहा देवी मन्दिर में बाबू बंधू सिंह ने अंग्रेज के सिर से बलि की परम्परा चालू की थी
  • आज भी यह परम्परा तरकुलहा देवी मंदिर गोरखपुर में निभाया जा रहा है
  • इंसान की सिर जगह बकरे के सिर की बलि चढ़ाई जाती है
  • मांस को मिटटी के बर्तन में पकाया जाता है
  • प्रसाद के रूप में मिटटी के बर्तन में दिया जाता है यह परम्परा वर्षो से से चली आ रही है

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