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बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग क्या है Buddha Ke Ashtangik Marg

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बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग क्या है जाने Buddha Ke Ashtangik Marg – बौद्ध इसे ‘काल चक्र’ कहते हैं। अर्थात समय का चक्र। समय और कर्म का अटूट संबंध है। क्यों आवश्यक है बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग ? आइए विस्तार से जानते हैं भगवान बुद्ध ने अष्‍टांगिक मार्ग का उपदेश दिया था I बौद्ध धम्म के अनुसार, चौथे आर्य सत्य का आर्य अष्टांग मार्ग है – दुःख निरोध पाने का रास्ता है I

  • कर्म का चक्र समय के साथ सदा घूमता रहता है।
  • आज आपका जो व्यवहार है वह बीते कल से निकला हुआ है।
  • कुछ लोग हैं जिनके साथ हर वक्त बुरा होता रहता है तो इसके पीछे कार्य-कारण की अनंत श्रृंखला है।
  • दुःख या रोग और सुख या सेहत सभी हमारे पिछले विचार और कर्म का परिणाम हैं।

भगवान बुद्ध का अष्‍टांगिक मार्ग जीवन को नई दिशा देता है I दुनिया का सबसे सरलतम दर्शन बौद्ध धम्म  है I – सिक्के पर अष्टांगिक मार्ग बना है, जिसे बौद्ध राजा आगे बढ़ा रहा है !

बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग क्या है

बुद्ध कहते थे कि चार आर्य सत्य की सत्यता का निश्चय करने के लिए इस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए : अरिय अट्ठङ्गिक मग्ग = बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग क्या है Buddha Ke Ashtangik Marg

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  • सम्यक दृष्टि : इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।
  • सम्यक संकल्प : जीवन में इन संकल्पों का बहुत महत्व है।
  • यदि दुःख से छुटकारा पाना होतो दृढ़ निश्चय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।
  • सम्यक वाक : जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता होना आवश्यक है।
  • यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
  • सम्यक कर्मांत : कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि होना जरूरी है।
  • आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।
  • सम्यक आजीव : यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं
  • तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा। इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।
  • सम्यक व्यायाम : ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो।
  • जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
  • सम्यक स्मृति : चित्त में एकाग्रता का भाव आता है, शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से।
  • एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।
  • सम्यक समाधि : उपरोक्त सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है।
  • और यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।

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Neelofer Syed
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