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बोधि वृक्ष क्या है बोधि वृक्ष इतिहास Bodhi Vriksha in Hindi

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बोधि वृक्ष क्या है बोधि वृक्ष का इतिहास Bodhi Vriksha in Hindi – PUJA बौद्धधर्म में वृक्ष पूजा का महत्व भगवान बुद्ध को बुद्धत्व जिस वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था बोधि वृक्ष का अर्थ पूजा विधि

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ज्ञान वृक्ष अथवा बोधि वृक्ष के रूप में पीपल का भारत में अत्यंत प्राचीन काल से महत्व रहा है। बोधि वृक्ष की पूजा बौद्धों के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव होती है, जो उन्हें बुद्ध के उपदेशों के प्रति आकर्षित करता है।

बौद्ध धर्म में बोधि वृक्ष को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है, क्योंकि यहीं पर गौतम बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था, जिससे उन्होंने जीवन की सत्यता का अनुभव किया।

बोधि वृक्ष क्या है किसे कहते है

  1. बोधि वृक्ष किसे कहते है?
  • बौद्ध वृक्ष की पूजा आमतौर पर बिहार राज्य के गया जिले में
  • बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर में की जाती है
  • जहां गौतम बुद्ध ने अपने बोधि प्राप्त किया था।
  • वहां मंदिर परिसर में स्थित एक पीपल का वृक्ष है जिसकी पूजा की जाती है।
  • इसी फिकस रिलिजिसयोसा वृक्ष के नीचे ईसा पूर्व 531 में सिद्धार्थ को बुद्धत्व (ज्ञान) की प्राप्ति हुई थी।
  • तभी बौद्ध साहित्य में उसे बोधि वृक्ष की संज्ञा मिली। तब से पीपल का वृक्ष बोधि वृक्ष कहलाता है।
  1. वृक्ष पूजा का महत्व ?

बौद्ध वृक्ष पूजा का महत्व बौद्ध धर्म में गहरा होता है, क्योंकि यह गौतम बुद्ध के निर्वाण के स्थल का प्रतीक है और उनके उपदेशों की महत्वपूर्ण स्थली रही है। भारत में जिन वृक्षों को पवित्र और संपूर्ण मानकर उन्हें धार्मिक स्वरूप प्रदान किया गया था उसमें पीपल सर्वोपरि है।

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बोधगया के अतिरिक्त कुशीनगर लुंबिनी तथा सारनाथ भी अन्य तीन महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। इस पूजा के दौरान श्रद्धालु बुद्ध के उपदेशों का पालन करने, अनुशरण करने और उनके मार्ग में चलने की प्रतिज्ञा करते हैं।

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  • बोधि का अर्थ है ज्ञान बोधि वृक्ष का अर्थ है ज्ञान का वृक्ष।
  • ग्रंथों के अनुसार –
  • बुद्ध ने इस पेड़ के नीचे 7 सप्ताह यानी 49 days तक अपने स्थान से हिले बिना ध्यान किया था।
  • इन दिनों वे उपवास पर थे। उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तथा उन्होंने सारनाथ में पहली बार धम्म की शिक्षा दी।
  • बुद्ध पूर्णिमा के दिन दूर-दूर से बौद्ध अनुयाई इस वृक्ष की पूजा करने आते हैं।
  • 8 दिसंबर बोधि दिवस को बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध की ज्ञान का जश्न मनाता है।
  • इस पूजा के दौरान शिष्यों और भक्तों का एक साथ आकर्षण होता है।
  • जो लोग धर्म का पालन करते हैं एक दूसरे को ‘बुदु सरनाई’! कहकर बधाई देते हैं।

बौद्ध धर्म में वृक्ष पूजा कैसे होती है-पूजा विधि


पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री शांति, प्रेम, ध्यान और मेधा के प्रतीक के रूप में समझी जाती है।

धूप, दीप, पुष्प, फल आदि से व्यक्ति अपने मन की शुद्धि और आत्मा की प्रकृति को प्रकट करते हैं।

बोधि वृक्ष की पूजा अनुष्ठान, ध्यान और साधना का हिस्सा भी होती है।

श्रद्धालु इस पेड़ से गिरे पत्ते को अपने साथ ले जाते हैं और पत्ते की भी पूजा होती है।
पूजा की प्रक्रिया निम्नलिखित तरीके से किया जाता है:

  1. वृक्ष के निकट आकर्षण करना: पूजा की शुरुआत वृक्ष के पास जाकर होती है, जहां श्रद्धालु विराजमान होकर ध्यान करते हैं।
  2. पूजा की सामग्री: बौद्ध धर्म में, धूप, दीप, पुष्प, फल, नीरजन, धन्य, आदि विभिन्न प्रकार की पूजा सामग्री का उपयोग किया जाता है।
  3. पूजा आरती: श्रद्धालु वृक्ष के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं और उसके बाद आरती दीप जलाते हैं।
  4. मन्त्र जाप: बौद्ध मंत्रों का जाप करना भी पूजा का हिस्सा होता है, जिससे श्रद्धालु ध्यान में जुट सकते हैं।
  5. ध्यान और मेधावी कर्म: पूजा के बाद, श्रद्धालु ध्यान और मेधावी कर्म करते हैं ताकि उन्हें बुद्ध के उपदेश का अध्ययन करने में सहायता मिले।

परंतु पूजा की विशेष प्रक्रिया विभिन्न बौद्ध संप्रदायों और स्थलों में भिन्न हो सकती है।

यह पूजा श्रद्धालु को बुद्ध के मार्ग में प्रगति करने के लिए प्रेरित करती है और उन्हें मुक्ति की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ने में सहायक होती है।

बौद्ध आध्यात्मिक गतिविधियों का आयोजन

यहाँ तक कि कुछ बौद्ध त्रदितीय विद्यालयों और मठों में बोधि वृक्ष की छाया में ध्यान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों का आयोजन भी किया जाता है। जो इस प्रकार है –

  1. बुद्ध के उपदेशों का स्मरण:

वृक्ष के नीचे बुद्ध ने अपने अद्वितीय उपदेश दिए थे, जिनमें मुक्ति, शांति, सहिष्णुता, सहानुभूति और करुणा की महत्वपूर्ण बातें शामिल थीं। वृक्ष की पूजा इन उपदेशों का स्मरण करने में मदद करती है।

  1. ध्यान और साधना:

बौद्ध वृक्ष की पूजा अनुष्ठान, मेधावी कर्म और आध्यात्मिक साधना के लिए प्रेरित करती है। इस पूजा के माध्यम से श्रद्धालु अपने आत्मा के साथ संवाद स्थापित कर सकते हैं और आत्मज्ञान में आगे बढ़ सकते हैं।

  1. शांति और प्रेम की प्रतीकता:

बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों में शांति, प्रेम और सहानुभूति की महत्वपूर्ण भूमिका है। बोधि वृक्ष की पूजा इन मूल्यों की प्रतीकता के रूप में श्रद्धालु को सजीव करती है।

  1. समाजिक संबंधों की स्थापना:

बौद्ध वृक्ष पूजा आमतौर पर समूह में की जाती है, जिससे समाजिक बन्धन मजबूत होते हैं और लोग आपसी सहयोग का संकल्प लेते हैं।

  1. आत्म-परिष्कृति

वृक्ष की पूजा के माध्यम से बौद्ध श्रद्धालु अपने आत्मा की परिष्कृति, शुद्धि और आत्म-समर्पण की दिशा में प्रेरित होते हैं इस प्रकार, बौद्ध वृक्ष पूजा धर्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व के साथ एक महत्वपूर्ण प्रतीक है जो श्रद्धालु को उनके मार्ग में प्रेरित करती है।

भगवान बुद्ध को बुद्धत्व जिस वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था

  1. भगवान बुद्ध ने अपने ज्ञान प्राप्ति के लिए पीपल को ही क्यों चुना?
  • पीपल का वैज्ञानिक महत्व:-
  • पीपल के वृक्षों की अफवाहे बहुत सुना होगा आपने कि इस पर भूत प्रेत का वास होता है।
  • इसे घर में नहीं रखना चाहिए और इसके पास नहीं रहन चाहिए। पर यह मिथ्या है, सत्य नहीं।
  • बर्चस्ववादी लोग अपने आप लाभ के लिए इस सच को छुपाते हैं।
  • लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार, पीपल एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देती है।
  • इस पेड़ से स्वच्छ ऑक्सीजन मिलता है। जो स्वस्थ के लिए बहुत लाभदायक होता है।
  • इस वृक्ष के जड़ से लेकर तना तक उसकी सारी पत्तिया औषधि से भरा हुआ है।
  • यह वृक्ष अपने आप में एनर्जी से भरपूर होता है। तथा रोगों से मुक्त करता है।
  • इसके पास बैठने से शीतलता मिलती है।
  • गौतम बुद्ध ने अपनी ध्यान को केंद्रित करने के लिए यही कारण था कि उन्होंने पीपल के वृक्ष को चुना ।

बौद्ध साहित्य का इतिहास

  1. बौद्ध साहित्य के इतिहास में बुद्धत्व प्राप्त सात और बुद्ध
  • बोधि वृक्ष बौद्ध साहित्य
  • बौद्ध कला में बोधि वृक्ष के अनेक अंकन –
  • सांची भरहुत बोधगया मथुरा अमरावती तथा नागार्जुनीकोण्ड के उत्कीर्ण शिल्प में देखे जा सकते हैं।
  • जहां उन्हें प्रायः चौकोर वेदिकाओं से घर दिया गया है मालाओं और छत्रों से सजाया गया है।
  • नर-नारियों के द्वारा हाथ जोड़कर उनकी पूजा की जा रही है
  • और मालाधारी सपझ विघाघरों और किन्नर उनके पाश्वर्ओ में आकाश में मर्डर आ रहे हैं।
  • सांची तथा अमरावती शिल्प के इन दृश्यों को ही देखकर फर्ग्यूसन ने उन्हें वृक्ष पूजा का आकलन माना था।

सांची तथा भरहुत में न केवल गौतम बुद्ध बल्कि सांची के विशाल स्तूप के उत्तरी तोरण के बीच की बडे़री के अग्रभाग पर तथा पूर्वी तोरण के ऊपरी बडे़री के पूर्व भाग पर उपयुक्त अलग अलग बुद्धत्व प्राप्त सातों बुद्धो का अंकन उनकी बोधिवृक्ष तथा प्रतीकों के माध्यम से किया गया है। यह एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव होता है और यह बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और मूल्यों की महत्वपूर्ण प्रतीकता है

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Neelofer Syed
Neelofer Syed
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